Friday 1 April 2022

जोड़ों का दर्द उत्पत्ति व कारण

 जोड़ों का दर्द उत्पत्ति व कारण

जोड़ों का दर्द उत्पत्ति व कारण

 हम अव्यवस्थित दिनचर्या से बीमार होते हैं। आवश्यकता से अधिक या कम खाते हैं, बिना भूख के खाते हैं, शारीरिक श्रम से जी चुराते हैं। प्रातःकालीन भ्रमण, व्यायाम पर ध्यान नहीं देते, समय पर खाना, सोना नहीं होना। आवश्यकतानुसार आराम नहीं करते। प्राकृतिक वातावरण खुली हवा, हरियाली, शुद्ध खान-पान का समावेश दिनचर्या में कम रहता है।


भोजन में अधिक नशीले पदार्थ, चाय, कॉफी, मिर्च मसाले और अम्लीय पदार्थों के खाने से रक्त में अम्लता बढ़कर जोड़ों में या इनके समीप एकत्र हो जाती है। इससे जोड़ों में सूजन और दर्द हो जाता है। माँस, अण्डे व मछली का सेवन करना, क्षारीय भोजन कम लेना, अपच, पाचन शक्ति कमजोर लम्बे समय तक रहना, रक्त गाढ़ा होना, पानी कम पीना, ठंडी हवा का प्रभाव होना, जोड़ में हड्डियों के बीच की खाली जगह संकरी होना, कब्ज, आँतों में मल की सड़न, रक्त के दूषित होने से जोड़ों में दर्द होने लगता है। 

शारीरिक और मानसिक कमजोरी, जीवन में समस्या आने पर धैर्य, आशा, श्रद्धा, कुंठा, भय, भावनात्मक अस्थिरता, असुरक्षा, चिंता, अंतस्रावी असंतुलन तथा शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता में कमी आ जाती है। जीवन में उतारचढ़ाव, हानि, इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाते। इससे मनःस्थिति बिगड़ी रहती है। मानसिक तनाव हो जाता है। यह भी गठिया का कारण है। 


भोजन में फल, सब्जियाँ, सलाद, दूध, दही कम खाते हैं। मीठा खाने की इच्छा अधिक रखते हैं। बार-बार जुकाम, खाँसी, बुखार, टॉन्सिल-प्रदाह, कब्ज, पेचिश, पायोरिया, पित्ताशय के रोग, फ्लु, डेंगु आदि होने पर जोड़ों का दर्द प्रायः हो जाता है। इन कारणों से जोड़ों का दर्द आर्थराइटिस होने की सम्भावना बढ़कर जोड़ों में दर्द की उत्पत्ति हो जाती है।


जोड़ों से आवाज-हमारे जोड़ों में से आवाज आती है। इसके पीछे तीन कारण मुख्य हैं। पहला तो यह कि हमारे जोड़ों में मौजूद सायनोवियल फ्लयूड जोड़ों के लिए ग्रीस का काम करता है। इस फ्लयूड में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं। जब हमारे जोड़ हिलते हैं, तो ये गैसें निकलती हैं और आवाज पैदा होती है। दूसरा कारण यह है कि हिलनेडुलने से हमारे जोड़ अपनी जगह से हिल जाते हैं। जोड़ों के हिलने से आवाज पैदा होती है। तीसरा कारण यह है कि कई बार हमारे जोड़ों में से ग्रीस कम हो जाती है और उनमें से आवाज आने लगती है। कुछ लोग सोचते हैं कि जोड़ों में से इस तरह से आवाज का आना नुकसानदायक है। लेकिन सच तो यह है कि अगर इससे आपको कोई कष्ट नहीं होता, तो यह नुकसानदायक भी नहीं 1 है।


1 लक्षण-आरम्भ में अचानक किसी जोड़ में सूजन, दर्द होता है। कुछ दिन बाद ठीक हो जाता है। हल्का-सा बुखार रहता है। रोग धीरे-धीरे फैलता है। जोड़ सूज जाते हैं। दर्द असहनीय होने लगता है। सबसे पहले पैरों से दर्द शुरू होता है, फिर सभी जोड़ों में फैल जाता है। इसमें प्रायः शरीर का भार ढोने वाले अंगों के जोड़ जैसे- कूल्हे, घुटने, टखने आदि अधिक प्रभावित होते हैं। सभी रोगियों में रोग के लक्षण समान नहीं होते। किसी को धीमा दर्द होता है तो किसी को हर समय दर्द बना रहता है। जोड़ों में सूजन और पीड़ा अधिक होती है। शरीर में अकड़न, जोड़ों में लाली और जोड़ सख्त हो जाते हैं। अंग विकृत होने लगते हैं। शरीर से मोटे और हाई ब्लड प्रेशर वालों को जोड़ों का दर्द अधिक होता है।

जोड़ों का दर्द उत्पत्ति व कारण

. हड्डियों के जोड़ों में चूना (Calcium) जम जाता है। हड्डियों में छोटे-छोटे छेद बन जाते हैं। इन छेदों में से चूना गिरने लगता है, जिससे जोड़ों में टूटफूट होने लगती है, इससे सूजन, दर्द होने लगता है। किसी रोगी के मामूली सी सूजन होती है, नहीं भी होती, लेकिन दर्द तेज, कड़ापन लिए और खिंचाव होता है। किसी के जोड़ में सूजन बहुत ज्यादा होती है, चलना, फिरना कठिन होता है। कुछ रोगियों में सूजन कम, ढीली रहती है। इस कारण रोगी को गति से दर्द नहीं होता। इस तरह का दर्द बुढ़ापे में होता है।


किसी में सूजन नहीं होती लेकिन दर्द लगातार बना रहता है। जोड़ों में खिंचाव, तनाव, माँसपेशियाँ सूखने लगती है, पतली हो जाती है। रोग पुराना होकर धीरे-धीरे रोग बढ़ता जाता है तथा जोड़ विकृत, टेडे-मेडे हो जाते हैं। इन जोड़ों को मोड़ने पर दर्द तेज होता है। जोड़ों के अन्दर की चिकनाई सूखने लगती है। अन्त में जोड़ों से चलना, फिरना, मोड़ना बन्द हो जाता है। उठना, बैठना भी कठिन हो जाता है। हृदय पर स्टेथोस्कोप लगाने से मर-मर की आवाज आती है। - . 


जोड़ों में दर्द की तीव्र अवस्था में सूजन, दर्द तथा बुखार रहता है। प्रभावित अंगों को छूने से दर्द होता है तथा गर्म लगते हैं। चलने से दर्द बढ़ता है। दर्द स्थान परिवर्तन करता है अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान पर चला जाता है। प्यास तेज लगती है जिससे पेशाब अधिक और बार-बार जाना पड़ता है। इससे दर्द कम होता है।


गठिया


आर्थराइटिस का ही एक रूप गठिया (Gout) है। यूरिक एसिड रक्त में मिलकर फिर सोडियम से मिलकर सोडियम यूरिट्रेट बनाता है जो कि गुर्दा (किडनी) और कारटीलेज व टीश्यूज में जमा हो जाता है और जगह-जगह सूजन उत्पन्न कर देता है। इससे जोड़ों में गाँठे हो जाती है, इनमें दर्द होता है। छोटे जोड़ जैसे हाथ की अंगुलियाँ टेडी हो जाती है। गठिया पाँव के अँगूठे से पैदा होकर धीरे-धीरे ऊपर की ओर एड़ी, टखने से ऊपर से जाती रहती है। दर्द, सूजन दिन में कम तथा शाम के बाद रात में व प्रातः के समय बढ़ता है। दर्द


घुटनों व जोड़ों के दर्द की चिकित्सा


1 तेज होने पर पेशाब गंदला और लाल होता है, प्यास अधिक लगती है। लम्बे समय तक रोग रहे तो हृदय, यकृत तथा गुर्दे खराब हो सकते हैं।


गठिया का उपचार—जोड़ों के चारों ओर हल्की मालिश करें, जोड़ों के व्यायाम करें। दर्द पर थपकी लगाये। जोड़ों पर गर्म, ठण्डे पानी का सेंक करें। पाचन शक्ति बढ़ाने पर विशेष ध्यान दें। पानी से पाचन शक्ति बढ़ाने के उपचार विस्तार से जानने के लिए लेखक की "मसालों द्वारा चिकित्सा" व "शक्तिवर्धक भोजन'' पुस्तकें पढ़ें। प्रायः आर्थराइटिस और गठिया के उपचार समान ही होते 1


गठियारूप संधि-शोथ (Rheumatoid Arthritis)


। इसमें दर्द, सूजन और थकान होती है। इसमें सारे जीवन काम करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसमें जोड़ों की शक्ल बिगड़कर जोड़ विकृत, कुरूप हो जाते हैं। जोड़ों की गति का लोच समाप्त होकर कड़ापन आ जाता है। दर्द इतना असह्यय होता है कि पानी भरा हुआ एक गिलास भी उठाना कठिन होता है। हाथों को सिर पर नहीं ले जा सकते। वजन व शक्ति घट जाती है। इसका आरम्भ हाथ और कलाई से होता है। जोड़ों में गाँठे उभर आती है। शरीर के जोड़-जोड़ में दर्द होता है। प्रारम्भ में बुखार रहता है लेकिन रोग पुराना होने पर बुखार नहीं रहता, केवल सूजन और दर्द रहता है।


जोड़ों का दर्द वर्षा के मौसम और रात को बढ़ता है।


स्वभाव में चिड़चिड़ापन और बेचैनी रहती है।


कारण-इसके मूल और वैज्ञानिक कारण अभी मालूम नहीं हैं। सम्भावित कारण निम्न हैं


1. आनुवंशिक—जिनके माता-पिता को रुमेटाइड आर्थराइटिस हों, उनकी सन्तान में यह रोग होने की प्रवणता होती है। -

जोड़ों का दर्द उत्पत्ति व कारण


2. तनाव-तनाव से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। तनाव का प्रभाव इतना हानिकारक होता है कि इससे जोड़ क्षति-ग्रस्त हो जाते हैं। दिनचर्या तनावपूर्ण रहती है। अति भावुकता, लम्बे समय से चली -

1 आ रही चिन्ता, कार्यभार की अधिकता से जोड़ों का दर्द होता है। मानसिक विश्राम करें। कुछ समय सीधी कमर करके बैठकर साँस को आता-जाता अनुभव कर ध्यान करें। इससे मानसिक विश्राम होता है। सख्त बिस्तर (हार्ड बेड) पर इस तरह लेटें कि दर्द वाले अंगों को पूर्ण आराम मिले। चिकित्सा काल में ध्यान रखें कि जोड़ों M में विकृति, टेडे-मेडे नहीं हो, जोड़ों की कार्य कुशलता रहे। इसके लिए जोड़ को जैसे भी सहारे की आवश्यकता हो, दें। रोगी जितना हो सके हल्के व्यायाम करें। रोगग्रस्त अंगों का सेंक व मालिश करें। 3. वातावरण प्रदूषण, बदलते मौसम की ठंडक नम, गीली जलवायु , और प्रदूषित जगहों में रहने से जोड़ों का दर्द बढ़ता है। दर्द प्रातःसोकर उठने पर अधिक होता है।


4. स्तनपान—जो स्त्रियाँ जितने लम्बे समय 13 महीने या अधिक समय तक स्तनपान कराती हैं, उनको उन स्त्रियों की तुलना में में रियुमेटिक गठिया का खतरा कम रहता है, जो कम समय अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं। अर्थात् जो स्त्री जितनी लम्बी अवधि तक स्तनपान करायेगी उसे उतना ही गठिया रोग कम होगा।


5. शीतल पेय-अधिक मात्रा में शीतल पेय—पेप्सी, कोला, लेमोनेड पीने से हड्डियाँ कमजोर होती हैं। शीतल पेयों में 'फास्फेट' की मात्रा अधिक होती है जो हड्डियों के लिए हानिकारक है। चोट लगने, रक्त वाहिका के सख्त होने, पाचन क्रिया कमजोर होने से जोड़ों का दर्द होता है।


6. अम्लीय भोजन–शरीर में अम्लता बढ़ने से जोड़ों का दर्द होता है। कार्बोहाड्रेट, अधिक मीठा व प्रोटीन खाने से अम्लता बढ़ती है। फल, दूध, उबली सब्जियाँ सलाद आदि खाने से रक्त में क्षारत्व आता है, जिससे शरीर निरोग रहता है। , 1


7. रजोनिवृति-स्त्रियों में हार्मोन्स के प्रभाव से दर्द अधिक होता है। स्त्रियों में रजोनिवृत्ति (मेनोपाज) के बाद जोड़ों का दर्द हो सकता है

प्रभाव-जोड़ों के दर्द का प्रभाव गुर्दे, फेफड़े, तंत्रिका तंत्र (Nervous System), रक्त शिरायें (Blood Vessels), आँखों पर पड़ता है। इसमें भी दर्द होने लगता है। रोगी की तीव्र अवस्था में रोग पूर्ण ठीक नहीं होने पर पुराना हो जाता है। 


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